1 | आख्यानकमणिकोस (भाग-1) | 170/- | 978-81-926664-5-7 |
2 | नाट्यशास्त्र में प्राकृत-सन्दर्भ | 160/- | 978-81-926664-4-0 |
3 | किरियासारो | 60/- | 978-81-926664-3-3 |
4 | णाणसारो | 75/- | 978-81-926664-2-6 |
5 | कसायपाहुडसुत्तं | 120/- | 978-81-926664-1-9 |
6 | रयणसारो | 100/- | 978-81-926664-0-2 |
7 | प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य में प्रतिपादित दार्शनिक मीमांसा | 125/- | 978-81-926664-6-4 |
8 | भारतीय दर्शन एवं साहित्य के विकास में प्राकृत वाड्मय का योगदान | 600/- | 978-81-926664-7-1 |
9 | आख्यानकमणिकोस (भाग-2) | 318/- | 978-93-84708-00-9 |
10 | प्राकृत भाषाओं की नाट्य साहित्य में प्रयुक्तियाँ | 428/- | 978-93-84708-01-6 |
11 | प्राच्या, पैशाची एवं आवन्ती प्राकृत (लक्षण एवं सन्दर्भ) | 428/- | 978-93-84708-02-3 |
12 | पालि-प्राकृत साहित्य के व्यावहारिक पक्ष एवं वर्तमान में उनकी उपयोगिता | 500/- | 978-81-926664-8-8 |
13 | गीर्वाणागिरा गौरवम् | 35/- | - |
14 | माधवस्वातन्त्रम् | 25/- | - |
15 | न्यायकुसुमांजलिविकास | 70/- | - |
16 | प्रबन्धपारिजात | 54/- | - |
17 | शाब्दबोधादिवादपंचकप्रकाशः भाग 1 | 63/- | - |
18 | शाब्दबोधादिवादपंचकप्रकाशः भाग 2 | 63/- | - |
19 | तन्त्रप्रदीप | 90/- | - |
20 | वृक्कयौतुकम् | 86/- | - |